तरुण प्रकाश श्रीवास्तव, सीनियर एग्जीक्यूटिव एडीटर-ICN ग्रुप
बारिश, बरसात या सावन – ये केवल झर झर झरते पानी का ही मौसम नहीं है बल्कि ये मदमस्त कर देने वाली सोंधी सोंधी कच्ची खुश्बू का भी मौसम है। यह दुनिया के सभी साहित्यों के सबसे पसंदीदा विषय है।उर्दू शायरी में बरसात के हज़ारों रंग दिखाई पड़ते हैं और कुछ रंग तो इतने पक्के हैं जो सीधे दिल पे अल्पनायें सजा जाते हैं।
संजय मिश्र ‘शौक’ उर्दू शायरी में फ़िराक़ गोरखपुरी, चक़बस्त व कृष्ण बिहारी ‘नूर’ की तरह गैर मुस्लिम शायरों की परंपरा के शायर हैं। ये एक ऐसे शायर हैं जिन्होंने एक गैर मुस्लिम होते हुये भी उर्दू शायरी को बहुत कुछ दिया है और उर्दू शायरी को जिन पर नाज़ है। उर्दू शायरी में ‘रुबाई’ एक अत्यंत कठिन विधा मानी जाती है क्योंकि इसमें मात्र चार पंक्तियों में ही अपनी पूरी बात कहनी होती है और संजय मिश्र ‘शौक’ को इस विधा पर महारत हासिल है। सिर्फ़ रुबाई ही नहीं बल्कि ग़ज़ल गोई में भी ‘शौक’ साहब का कोई जवाब नहीं। आइये, उनकी कुछ रुबाइयों के आइने में ‘सावन’ और ‘बरसात’ को निहारते हैं –
“सावन में हर इक शाख़ बहक जाती है।
उजड़ी हुई खेती भी लहक जाती है।।
फूलों से मुहब्बत न करो दीवानों ।
दो रोज़ में फूलों की महक जाती है।।”
और एक रुबाई यह भी –
“दिल रंज में डूबा तो उजाली बरसात।।
पलकों के किवाड़ों ने छिपा ली बरसात।।
फिर सुबह की देवी की घनी अलकों से।
इक प्रेम पुजारी ने चुरा ली बरसात।।”
और उनके इस शेर का भी अपना ही आनंद है –
“बारिश में सर झुकाए हुए तन को मोड़ के।।
बैठा है इक परिंद, परों को सिकोड़ के।।”
तश्ना आज़मी मंच पर तरन्नुम के और किताबों में तसव्वुर के बेहतरीन शायर हैं। जब तसव्वुर ही तरन्नुम बन जाये तो उसे ही तश्ना आज़मी कहते हैं। बरसात पर उनके कुछ बेहतरीन अशआर आपके लिये –
“जब भी बरसात में गुज़रेंगे इधर से बादल।
अब न बरसेंगे तिरी ज़ुल्फ़ के डर से बादल।।”
एक बहुत खूबसूरत शेर यह भी –
बरसात देखना है अगर उसके प्यार की,
‘तश्ना’ तु खुद को प्यार के क़ाबिल बना के देख।
और यह भी क्या खूब कहा है –
“हर ज़बां पर फ़साना है बरसात का।
कितना मौसम सुहाना है बरसात का।।
ये मुसलसल फुवारें ख़ुदा की क़सम,
हर पहर आशिक़ाना है बरसात का।।”
वर्ष 1963 में फ़ैसलाबाद, पाकिस्तान में जन्मे शायर अंजुम सलीमी वर्तमान में एक चर्चित शायर हैं। बारिश पर वे फ़रमाते हैं –
“साथ बारिश में लिए फिरते हो उस को ‘अंजुम’
तुम ने इस शहर में क्या आग लगानी है कोई।”
जनाब मनीष शुक्ला ‘पेशे’ से एक प्रशासनिक अधिकारी हैं लेकिन ‘पैशन’ से एक बेहद संजीदा शायर। मनीष शुक्ला की कलम में वह हुनर है जो लोगों को देर तक बाँधे रहता है। आइये, देखते हैं कि आखिर बरसात उनके लिये क्या है –
“अब तक जिस्म सुलगता है,
कैसी थी बरसात न पूछ।”
और एक शेर यह भी –
प्यार की पहली बारिश में भी है बिल्कुल वैसा जादू,
जैसा जादू भीनी भीनी मुश्क ए ख़स में होता हेै।”
और चलते-चलते –
“वो जिनके ज़िक्र से नम हो गया हूँ,
अगर उन बारिशों में भीगता तो।”
डॉ तारिक़ क़मर शायरी व पत्रकारिता, दोनों में गहराई से दखल रखते हैं। उनकी शायरी संजीदा शायरी है और बहुत दूर तक अपने सुनने-पढ़ने वालों के साथ सफ़र करती है। कोई भी मौजू हो, उनकी शायरी उसे नयी दिशा दे देती है। बारिश पर इस बेहतरीन शायर के कुछ अशआर का आप भी लुत्फ़ उठाइये –
“डरता रहता हूँ कि बारिश में न बह जाये कहीं,
उसने इक घर तो बनाया है मेरी आँखों में।”
एक शेर यह भी –
जिस्म इक कच्चा मकाँ और मुसलसल बारिश,
मेरी आँखों को मगर होश कहाँ रहता है।”
और इस शेर पर भी नज़र डालिये –
दिल को समझाने की कोशिश भी बहुत होती हेै।
और फिर आँखों से बारिश भी बहुत होती है।।”
नादिम बाराबंकवी उर्दू शायरी में अपने सामाजिक सरोकारों एवं प्यार के संयोग पक्ष के लिये विशेष रूप से जाने जाते हैं। बरसात के मौसम में चाँद के मानवीकरण की इससे बेहतर मिसाल मिलना मुश्किल है –
” बरसात ग़मों की है, उलझन का बसेरा है।
मौसम के तकाज़ों ने, जज़बात को घेरा है।।
छाईं हैं घटायें कुछ, यूँ चाँद के चेहरे पर,
इक सिम्त उजाला है, इक सिम्त अँधेरा है।।
लखनऊ से ताल्लुक रखने वाले जनाब मोहम्मद अली साहिल उर्दू शायरी की दुनिया में तेजी से चमकता हुआ नाम है। पुलिस विभाग का अधिकारी ह्रदय पक्ष से दूर होता है, अगर इस झूठी मान्यता की सच्चाई परखनी हो तो आपको एक बार साहिल साहब से अवश्य रूबरू मिलना ही चाहिए। उनकी ग़ज़ले मेरे इस दावे की भरपूर नुमाइंदगी करती हैं। पेश है बरसात पर उनका यह शेर –
“डाली जो मैंने अपने गुनाहों पे इक नज़र।
आँसू बरस गए किसी बरसात की तरह।।”
सिराज मंज़र काकोरवी भी शायरी की दुनिया में एक जाना पहचाना नाम है। आइये, सावन पर उनके भी एक हसीन शेर का आनंद लें –
“उसकी जुदाई से मैं परेशान हूँ बहुत,
मेरे बगैर उसका भी सावन उदास है।”
वर्ष 1980 में बुहावलपुर, पाकिस्तान में जन्मे अज़हर फ़राग़ नई पीढ़ी के शायर हैं। ‘मैं किसी दास्तान से उभरूंगा’ उनका मजमुआ है। उनकी शायरी में आधुनिक जीवन हँसता बोलता दिखाई देता है-
“दफ़्तर से मिल नहीं रही छुट्टी वगर्ना मैं,
बारिश की एक बूँद न बे-कार जाने दूँ ।”
जम शोरों, सिंध, पाकिस्तान में 1988 को जन्मे तहज़ीब हाफ़ी एक युवा शायर हैं लेकिन उनकी शायरी खासी पुख्ता है। कमाल का शेर निकाला है उन्होंने बारिश पर –
“मैं कि काग़ज़ की एक कश्ती हूँ,
पहली बारिश ही आख़िरी है मुझे।”
देवकीनंदन ‘शांत’ हिंदी का सफ़र करते हुये उर्दू के ख़ेमे में पहुँचे हैं इसलिये उनकी शायरी में दोनों भाषाओं की महक है। वे जब भी कुछ उकेरते हैं, पूरे मन से उसमें समा जाते हैं और उनकी यह विशिष्टता उनके अशआर से अनायास ही झलकती है। आइये, उनसे मिलते हैं उनके कुछ अशआर के माध्यम से –
“कहानी है बड़ी दिलचस्प अपनी ज़िन्दगानी की,
कि बारिश में किसी जलते तवे पर बूँद पानी की।।”
और एक शेर यह भी –
‘वक़्त बारिश के इस दरिया में कुछ ऐसे उतरा,
चांदनी छिपके समंदर में हो उतरी जैसे।”
ज़ुबैर अंसारी लखनऊ की सरज़मीन के एक बेहतरीन युवा शायर हैं । जब भी कहते हैं, ऐसा कहते हैं जिसे कोट किया जा सकता है। आइये, बरसात पर उनका नज़रिया भी देखते हैं –
“एक शोला जल उठा है नागहां बरसात में।
काश हो जाये ये मुझ पर मेहरबाँ बरसात में।।
रंज ओ ग़म की बारिशों से भी बचा लेती थी वो,
याद आती है हर इक पल, मुझको माँ बरसात में।।”
अनुज ‘अब्र’ एक चर्चित युवा शायर है। उनकी शायरी में गहराई भी है और ठहराव भी। उनके अनेकों अशआर टकसाली हैं और सीधे दिल पर चस्पा होते हैं। बारिश को वे अपने ही अंदाज़ से देखते हैं और उनके इसी अंदाज़ के ही लोग दीवाने हैं। मुझे खुशी हो रही है बरसात के इस मौजू पर ‘अब्र’ यानी पानी से भरी घटा से मिलवाते हुये –
“हिज्र की आग कहीं फूँक न डाले ये बदन,
वस्ल के अब्र की मानिंद बरस जा मुझ पर।”
और इस शेर का तो जवाब ही नहीं –
“एक बारिश में उफनने लग गये,
और ये ख़्वाहिश कि सब दरिया कहें।”
और ये कमबख़्त आँसू जब भी बरस पड़ें, वह बारिश का मौसम बन ही जाता है –
“कितनी बेचैन थी बरसने को,
उसके जाते ही आ गई बारिश।
आज तक मैं भुला नहीं पाया,
तेरे जाने के बाद की बारिश।”
मध्य प्रदेश से तआल्लुक रखने वाले युवा कवि व शायर राज तिवारी जितने महीन हिंदी गीतों में हैं, उतना ही पैनापन उर्दू शायरी में भी उन्हें हासिल है। उन जैसे नौजवान शायरों व कवियों की रचनाएँ स्वत: घोषणा करती हैं कि दुनिया को स्तरीय साहित्य अभी लंबे समय तक देखने को मिलेगा। आइये, उनका यह शेर बताता है कि मेरा दावा कितना सही है –
“बादल थके हुये थे सो छत पर ठहर गये,
कच्चा मकान था मिरा टपका तमाम रात।”
अरविंद ‘असर’ की शायरी उस गंभीरता से निकलती है जहाँ बाहरी खूबसूरती के बाद शायरी की असली गहराई शुरू होती है। उनके शेर घंटों सोचने के लिये मजबूर कर देते हैं और सुनने वाले जब उपस्थित रह कर भी खो जायें तो यह समझ लेना चाहिए कि शायरी उस मुक़ाम पर पहुँच गयी है जहाँ उसे वास्तव में पहुँचना था। बारिश पर क्या असरदार अशआर निकाले हैं भाई अरविंद ‘असर’ ने –
“आंखों से मेरी अश्क टपकता ज़रुर है।
बारिश से तेरी याद का रिश्ता ज़रूर है।।”
एक शेर यह भी –
“भीगे थे जिसमें साथ तेरे एक बार हम,
तन मन भिगो रही है वो बरसात आज भी।”
और इस शेर की सादगी ही इसका कमाल है –
“मौसम की शोख़ियों का मज़ा लेने चल पड़े।
बारिश हुई तो बच्चे घरों से निकल पड़े।।”
विवेक भटनागर ग़ज़लों की दुनिया में एक स्थापित नाम है। वे ग़ज़ल कहते नहीं, उसे जीते भी हैं और तभी वे दावा करते हैं कि ‘छींक लेती हैं खाँस लेती हैं, मेरी ग़ज़लें भी साँस लेती हैं।’ वे बारिश पर फ़रमाते हैं –
“बगीचा महमहा उट्ठेगा फिर खुशियों के फूलों से।
कि बारिश ग़म की बस इस बात की ऐलान होती है।
अमिताभ दीक्षित साहित्य, संगीत व कला, तीनों मिट्टियों से बने इंसान है। उनमें ये तीनों कलायें एक साथ उपस्थित हैं। उन्होंने अपनी खूबसूरत यादों को बारिश की ठंडी हवा से टाँक रखा है। एक खूबसूरत शेर आपके हवाले –
बारिश फिर लेकर आयेगी,अपने देश की ठण्डी हवा
चुपके से फिर मिल पाएंगे यादों की बारातों में।”
मंजुल मंज़र उर्दू शायरी में उभरता हुआ नाम है। मंच पर उनकी उपस्थिति माहौल को जीवंत कर देती है। वे शेर कहते हैं और बहुत खूब कहते हैं। कुछ शेर बारिश पर –
“बारिशें काली घटाएं हैं तो अच्छी चार दिन,
देर तक बरसे तो सावन भी बहा देगा तुझे।”
और एक शेर यह भी –
“बरस जाते हैं बिन बरसात के ये,
बहुत आवारा बादल हो गए हैं। “
अपर्णा सेठ एक उभरती हुई शायरा हैं। बारिश के रंग इनके पास भी हैं और ये खूबसूरत रंग जो यादों के आँगन में नृत्य करते हैं। वे कहती हैं –
“हुई बरसात तो आँखों में नमी भी छाई।
भूली बिसरी हुई यादों की जो बदली छाई।।”
एवं
“झूम के इस तरह बरसा है ये बैरी सावन,
चोट जो दिल में छिपी थी, वो उभर आई है।”
एक शेर और भी मेरे दिल के बहुत करीब है लेकिन इसके शायर नामालूम हैं। बारिश का बहुत ही यथार्थ चित्र उभरता है इस शेर से –
“दर-ओ-दीवार पर इतना गिरा है रात भर पानी,
सुबह गर धूप भी निकलेगी तो घर टूट जायेगा।”
जब तक कायनात रहेगी, तब तक मौसम रहेंगे और जब तक मौसम रहेंगे, तब तक बरसात भी रहेगी, बारिश भी रहेगी और सावन भी रहेगा। बारिश आग भी है और पानी भी लेकिन किसके हिस्से में क्या अाता है, यह तो वही जानता है। न जाने कब से बारिश के फ़साने लिखे जा रहे हैं और शायद कयामत के दिन तक लिखे जायेंगे। हम आप हों न हों लेकिन शायरी में बरसात हमेशा रहेगी। इस पर लिखने वालों, कहने वालों की कभी कमी नहीं होगी क्योंकि बारिश होने पर भी शेर कहे जायेंगे और न होने पर भी। चलते-चलते दो-एक शेर अपना भी शेयर करना चाहता हूँ –
“मैं भी टूटा बहुत मोहब्बत में,
अबकी बारिश भी टूट कर बरसी।”
और –
“ये बरसता हुआ पानी, ये मेरी बेचैनी,
पिछली बरसात मुझे आज बहुत याद आई।”